जियोपोता पुत्रजीवा - वैद बाबा जी रोपड़

जय गुरुदेव
मेंने एक बहुत सुंदर आर्टिक्ल लिखा है एक बार जरूर पढे |
प्रिए भाई व बहनों आज मे आपको एक बेहतरीन, जड़ी-बूटी जियोपोता, पुत्रजीवा के बारे में जानकारी दूंगा ।
जियोपोता _ पंजाबी में इसका मतलब है “तेरा पुत्र तो जीवे व तेरा पोता जीवे “ इसका मतलब है
“ पुत्रजीवा ”
जो माता-बहन इस बूटी का परयग अपनी ज़िंदगी में करेगी उसके शरीर में ऐसे तत्व पैदा होते है जिससे की उसकी पोते की पीड़ी तक संतान में कोई परेशानी नहीं आती - वैद्य बाबा जी |
इसके बीज की गिरी ,पत्र या जड़ के दूध के साथ सेवन से म्रत्व्त्सा (जिनके बालक मर जाते है ) को दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति होती है ।
जियोपोता का विभिन्न भाषाओ में नाम
हिन्दी – जियोपोता, पितोजिया, पतजु ,पुत्रजीवा |
संस्कृत – पुतजीवा ,गर्भकर ,यष्टीपुष्पी ,अरथसाधक |
पंजाबी – जियोपोता |
लेटिन – putranjiva roxburghli
एरण्डकुल के इस स्देव हरे भरे ,सूहाव्ने ,मध्याकार बृक्षों के काण्ड सीधे , सरल दीर्घ होते है । छाल कालिमायुकत भूरे रंग की होती है । इसके पत्ते अशोक पत्र के जैसे 1-3 इंच लंबे ,गहरे रंग के व चमकीले होते है । इसके पुशप- पीताभ श्वेत रंग के छोटे-छोटे गुच्छो होते है । फल चरबेरी जैसे ,लैम्ब गोल ,नुकले ,बीज या गुठली – बेर की गुठली जैसी होती है । फूल बसंत कुल में लगते है ओर फल ठंड मे पकते है ।
इसके पत्र व गुठली का परयोग क्वाथ रूप में शीतजवर में करते है ।
गुण – जियोपोता कड़वा,लबन से भरा हुआ रस युक्त , रूखा , ठंडा , स्वादिष्ट , खूबसूरत , खुशबूदार , माल तथा मूत्र को साफ करने वाला ,अंडकोश के लिए अच्छा , उत्तेजना को बढ़ाने वाला , गर्भवती ओरतों के लिए लाभदायक , आँखों के लिए काफी लाभकारी तथा वाल,कफ,उल्टी,जलन,जहर आदि को खतम करने वाला होता है ।
अगर किसी स्त्री को बांझपन की शिकायत हो तो जियोपोतक के बीज की गिरि , पत्ते तथा जड़ को दूध के साथ सेवन करने से उसकी यह शिकायत दूर हो जाती है । यदि कोई व्यक्ति ठंड के बुखार से पीड़ित है तो इसके पत्ते तथा गुठली का प्रयोग काढ़े के रूप में सेवन करने से उसका बुखार उतर जाता है ।
विशेष –
इसके बीज को धागे से पोहकर ,पुत्र प्राप्ति के लिए ओरते गले मे पहनती है तथा बच्चो के गले में भी पहनाती है ,जिससे व स्वस्थ बने रहते है । रुद्राक्ष की तरह ही इसके बीजों की माला धारण भी की जाती है ।
रसायनिक संघटन – बीज में लगभग 28.86 प्रतिशत मज्जा या गिरि होती है ,जिसमे 42.9 प्रतिशत स्वच्छ हल्का, पीतवर्ण का तेल प्राप्त होता है । इस तेल में गलिसरीन जैसा क्षारीयसत्व होता है ।
इनमे दो पेड़ होते है
1- नर ओर
दूसरा मादा
अगर दोनों निकट लगे हो तो ही मादा को फल पड़ता है
यह दोनों एक दूसरे के निकट ही लगते हैं। इनका चित्रण साथ में दिया गया है।
इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। परमात्मा आप को लंबी सेहतमंद उम्र दे ,आपका जीवन सफल हो ,…जय गुरुदेव
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